Dec 11, 1978

गायत्रीची आरती

आरती ओवाळूं जयजय गायत्रीमाते ||
वेदराशि स्वामिनी  वंदितो तवपदकमलाते वंदितो तवपदकमलाते ||धृ||

बहुसुकृतांची जोडि म्हणुनिया द्विज जन्मा आलो |
संसाराच्या चकव्यामाजीं सहजपणे रमलो |
सुखदु:खाच्या पाशामधि परि गुरफटुनि बसलो अचानक गुरफटुनि बसलो |
ज्ञानराशि तव विस्मरणाने संदेहि बुडालो ||१||

चतुर्वेदमय दिव्यदेहिनी ब्रह्ममयी माऊली |
सप्तस्वर छंदर्षिदेवता अलंकार ल्याली |
तत्वअर्थवर्णात्मकशक्ति तेजा सांभाळी | अलौकिक तेजा सांभाळी |
भक्तवत्सले माते तुझिया लोळण पदकमळी ||२||

तपोमयी यज्ञमयी देवी स्वाध्यायमयी तूं |
ज्ञानकर्म सत्संगमबोधे बोध्य एक परि तूं |
शाब्दबोध, तत्वबोधभेदिनि शुद्ध वेदमयी तूं | निरंजन शुद्ध वेदमयी तूं |
वेदहृदय हे समजुनि देई हेंचि तुला प्रार्थूं ||३||

हिरण्मयी वाग्वती भास्वती शाश्वतसुखदात्री |
अजअव्यय परमेशस्वामिनी कोटिभुवनकर्ती |
रविमंडल हृदयस्थ हंसगा वंदू गायत्री | ज्ञानदा वंदू गायत्री |
विश्वमंगले वेदराज्य दे भक्त हेचि प्रार्थी ||४||

आरती ओवाळू जयजय गायत्रीमाते ||
वेदराशि स्वामिनी  वंदितो तवपदकमलाते वंदितो तवपदकमलाते ||

भाद्रपद अश्विन, शके १९००